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कविता तो एक जीवन को तोड़कर सकल जीवन बनाती है। और जीवन टूटता है, वह कवि का है।

- त्रिलोचन

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।

patrika ka dharohar

पत्रिका की धरोहर

‘नई धारा’ हिंदी की एक द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका है, जिसका प्रकाशन अप्रैल 1950 से निरंतर होता आ रहा है। हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के शीर्ष पर विराजित ‘नई धारा’ का लोकार्पण बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह ने किया था। भारतीय साहित्य की विरासत को संजोती हुई विगत एकहत्तर वर्षों से ‘नई धारा’ का अनवरत प्रकाशन हो रहा है।

74

वर्षों से चली आ रही 

10,000+

कुल रचनाएँ प्रकाशित

3,000+

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नई धारा संवाद | गीतांजलि श्री

सूत्रधार – मिहिर पंड्या

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आपने यह कहा है

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प्रिय बेनीपुरी जी,

पंचतंत्र में एक नख-दंत-विहीन सिंह का किस्सा पड़ा था, जो वृद्धावस्था में एक सुवर्ण कंकण लेकर सरोवर के निकट बैठ गया था और बिचारा भगवान का भजन किया करता था! स्नान करने के लिए जो भक्त (और भगतिन!) आते उन्हें उपदेश देता था और एकाध को, जो निकट पहुँच जाते, अपना कलेवा भी बना लेता था! इसी प्रकार उसकी जीवन यात्रा चल रही थी। अंत में उस सिंह का क्या हुआ, मैं भूल गया हूँ, पर इतना मैं जानता हूँ कि उसका कंकण किसी ने नहीं छुड़ाया; और आपने तो मेरा …

आदरणीय बेनीपुरी जी,

सादराभिवादन! ‘नई धारा’ प्राप्त हुई। देखकर ही हर्ष से हृदय पुलकित हो उठा। आपके कुशल हाथ जिस वस्तु में लग जाएँ, वास्तव में उसमें प्राण और रस का संचार हो जाएगा। पत्रिका की प्रशंसा मैं किन शब्दों में करूँ। उसमें आपने क्या नहीं रखा है! उपयोगिता के साथ-साथ लालित्य का सम्मिश्रण, कलात्मक साहित्य की सर्वांगपूर्णता की अनूठी सामग्री का आकर्षण ही इसकी श्रेष्ठता का परिचय देता है। मेरी हार्दिक कामना है–‘नई धारा’ नूतन राष्ट्र के प्राणों …

प्रिय भाई बेनीपुरी जी,

‘नई धारा’ के दर्शन हुए। इसमें साहित्य की जितनी तरंगे हैं उतनी किसी पत्र में नहीं देखीं। आपकी उमंगों के झोंकों को ही इसका श्रेय मिलना चाहिए। और मैं जानता हूँ कि आपकी उमंगों के प्रभाव में कभी कमी नहीं होगी। इसलिए ‘नई धारा’ की तरंगों की विविधता में मुझे आगे भी कोई संदेह नहीं है।

यह जानकर और भी प्रसन्नता है कि आप हिंदी साधकों से नए-नए प्रकार का साहित्य लिखाने में सिद्धहस्त हैं। यदि इस प्रकार के प्रयत्न पहले होते तो हिंदी का …

प्रिय बेनीपुरी,

कविता तुम्हें पसंद आई, इसकी मुझे खुशी है, पर आगे जो पूछ रहे हो वह खतरे से खाली नहीं है। तुम्हारे कान में तो सब डाल दूँ किंतु बाबा, तुम तो उसे अखबार में छाप दोगे। फ़जीहत करानी है?

कुछ …

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